शुक्रवार, 25 जनवरी 2008

युरोप मे पैसा कमाने के चक्कर मे मत लूटो

आज मे एक एसे लडके से मिला जो कुछ दिन पहले भारत से यूरोप (जर्मन )आया था! आया क्या एजेंट छोड गया
उस को!! परमजीत सिह नाम का ये नोजवान पंजाब के किसी गाव् का हें ? पुछ्ने पर उस ने जो आपबीती सुनाई
वो काबीलेगोर हें ! दाद देनी पडेगी एसे कबुतरबाजो को जो नई-नई ईजाद पेदा करते हें युवकों को यूरोप भेजने के लिये! उस परमजीत नामक युवक ने बताया की वो ( भारतिये मुद्रा मे ) सात लाख रुपया एजेंट को दे कर दो महीने
बाद जर्मन पहुचा ! उस ने भारत से जर्मन पहुचने तक की जो स्टोरी सुनाई वो इस प्रकार हें !रवि गुप्ता नाम का एजेंट
जो दिल्ली का हें ,से मिला था और सात लाख रुपये मे जर्मन पहुचाने की बात हुई ( मेरे गाव के कुछ लडके पहले भी
इसी तरह गये हें) उस एजेंट ने सात लाख रुपये,पासपोर्ट,और पाच फोटो ले कर दस दिन के बाद आने को कहा
लेकिन एक सप्ताहा बाद ही एजेंट का फोन आ गया की जल्दी ही कपड़े ले कर दिल्ली आ जाओ !
दिल्ली पहुचने पर पता चला की चार और लड़के भी साथ जा रहे हें हमारा एक सात लोगो का ग्रुप बनगया था?
जिस मे एजेंट और उस का एक सहायक ओर बाकी हम पाच लडके हम सब को एक न्युज चेनल के
आई-कार्ड बने हुये दिये गये जिन पर हमारा नाम लिखा था! और कुछ दिनो की ट्रेनिग जिस मे हमे सिखाया ओर
समझाया गया कि हम टी.वी.चेनल के लिये डाक्युमेन्ट्री फ़िल्मे बनाते हें ! एजेंट ने बताया कि सब से पहले हमे
बेकाक़ ( थाईलेंड ) जाना हें हमारा वीसा और टिकट तेयार होगया ! अगले दिन हम बेकाक़ (थाईलेंड) भी
पहुच गये ! दो दिन हम घुमे-फ़िरे और हमारे एजेंट ने कुछ कैमरे से फ़िल्म भी बनाई ! और जिस बात ने हमे
बहुत परेशान किया वो थी अगले रोज पोलेंड एम्बेसी मे जा कर पोलेंड का वीसा लेने के लिये !जिस कारण
हम पाचों लडके सो नही सके !क्योकि हमे पोलेन्ड जाने का कारण बताना था !वो कारण ही हमारी समस्या थी
हमे बताना था की हम उन लोगो पर डाक्युमेन्ट्री फ़िल्म बना रहे हें जो अवैध रुप से पोलेंड के रास्ते जर्मन घूसते
हें जब कि हम खुद अवैध रुप से युरोप जा रहे थे !हमे बताया गया था की पोलेंड पहुचते ही हमे जंगल के रास्ते जर्मन पहुचना हे ! हम कुछ नही कर सकते थे, क्योकि पैसे तो हम पहले ही दे चुके थे ! किसी तरह पोलेंड का
वीसा भी मिल गया !मन मे खुशी भी ओर डर भी लगा हुआ था! तीसरे रोज हम पोलेंड भी पहुच गये यहा आ कर देखा तो हमारे जेसे बहुत से लोग इन एजेंटों के चगूल मे फ़से हुये हें !कुछ दिन रुकने पर एक रात को हम सब को
अलग-अलग ग्रुपो मे बाट कर जंगल के रास्ते जर्मन पहुचा दिया गया ! यहा पर भी अभी काम नही मिल रहा
यह व्यथा सुना कर परमजीत भावुक हो गया ! इस जेसे कितने ही परमजीत इन माफ़िया एजेंटों के हाथों
युरोप आने के चक्कर मे अपना घर लुटा रहे हें ? अब तो युरोप मे भी बहुत कडे नियम लागू हो गये हें !एसी हालत
मे अगर पुलिस के हाथ लग गये तो सजा भुगतने के साथ ही वापिस अपने देश भेज देते हे !एजेंटों को जो पैसे दिये
वो अलग साथ सजा भुगतो अलग?